Wednesday, February 22, 2012

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निमंत्रण आर्य समाज का (2) - स्व. पं. गंगाप्रसाद उपाध्याय‌ जी
Submitted by AnandBakshi on Thu, 2009-03-19 15:52.

आर्य समाज‌

....
अच्छा और उचित भोजन न दोगे तो अनुचित भोजन खाने पर लोग बाधित होंगे | यही कारण है कि जब उचित ईश्वरवाद से मुंह मोड़कर लोग नास्तिक बन गए तो नास्तिकों में भी भूत-प्रेत या कल्पित वस्तुओं और कब्रों की पूजा आरम्भ हो गई | इसलिए ऋषि दयानन्द ने आर्यसमाज के पहले दो नियमों में ईश्वर के ठीक ठीक स्वरूप का वर्णन किया |
(
अब गतांक से आगे)

अर्थात्
1.
ईश्वर एक ऐसी सत्ता है जो सारे जगत् का आदिमूल है |

2.
जगत् मिथ्या नहीं है | यदि जगत् मिथ्या होता तो आदि मूल भी मिथ्या होता | उपनिषद् कहते हैं - " कथं असतः सत् जायेत" अर्थात् असत् से सत् उत्पन्न नहीं हो सकता और सत् से असत् उत्पन्न नहीं हो सकता "नाभावो विद्यते सतः" यह गीता का वाक्य है |

3.
उस आदिमूल सत्ता का दूसरे नियम में वर्णन है अर्थात् वह सच्चिदानन्द ! एकरस है, आकृति वाला नहीं है, निराकार है | क्योंकि रूप रंग आदि आकार तो भौतिक है | भौतिक चीजें अनित्य होती हैं | ईश्वर अनित्य नहीं, अनित्य तो जगत् है | ईश्वर अवतार भी नहीं लेता | और कोई जड़ पदार्थ ईश्वर का स्थानापन्न नहीं बन सकता |

4.
इसलिए सब प्रकार की मूर्तियां जो ईश्वर के स्थान में पूजी जाती हैं कल्पित और भ्रमात्मक हैं और आध्यातमिक दृष्टि से सर्वथा अनुचित और हानिकारक हैं| सब प्रकार की मूर्तिपूजा को बन्द कर देना चाहिए | जितनी मूर्तियां पशु-पक्षियों के आकार की जैसे शेषनाग की, या नर-पशु की मिली हुई जैसे जैसे गणेश या नरसिंह की, या पीपल, वट आदि वृक्षों की, या राम, कृष्ण, विट्ठल या मरियम आदि की, सभी का पूजना पाप है | मरे हुए महात्माओं की कबरों की पूजा पत्थर की मूर्तियों को पूजने के समान ही अनुचित है | यह वस्तुतः ईश्वर पूजा है ही नहीं |

5.
ईश्वर की पूजा एक आध्यात्मिक कर्म है | अर्थात् अपने अन्तःकरण में उस सत्ता पर विचार करना जिसकी व्यवस्था में यह जगत् चल रहा है | हाथ जोड़ना, सिर को नमाना, सिजदा करना, दण्डवत् करना, फूल या जल चढ़ाना - ये सब ईश्वर पूजा की भ्रमात्मक रीतियां हैं |

6.
भिन्न भिन्न अवतार मानने वालों ने जब अलग-अलग अवतार,अलग‌-अलग पैगम्बर या अलग-‍अलग सन्त माने तो पूज्य पदार्थों की भिन्नता के कारण पूजकों के भी अनेक सम्प्रदाय बन गए | मन्दिरों और मस्जिदों पर झगड़े हुए | ईसा की जेरूसलम की कब्र को हथियाने के लिए ईसाइयों और मुसलमानों में जो सलीब के युद्ध हुए वो कई शताब्दियों तक मानव संहार करते और कराते रहे | यदि मनुष्य बुत-परस्ती, कबर-परस्ती, मर्दुमपरस्ती छोड़ कर उस विशाल सत्ता का ध्यान करता है, जो प्रत्येक देश् और प्रत्येक काल में हमारे दिलों में विद्यमान रहती है, तो अवश्य ही धर्म के माथे पर मानव संहार के कलंक का टीका न लगता |

आर्यसमाज का मुख्य उद्देश्य है कि मनुष्य मात्र के हृदय में सच्ची आस्तिकता की शुभ भावना उपजे |

तीसरे नियम में 'वेद‌' के पढ़ने और पढ़ाने, सुनने और सुनाने, मानने और मनवाने का संकेत है | 'वेद‌' न केवल मनुष्य जाति की प्राचीनतम पुस्तक है, अपितु उसमें मनुष्य की लौकिक और आलौकिक उन्नति के ऐसे नियम दिए हैं कि हम सैकड़ों बुराइयों से बच सकते हैं | मनुष्य समाज के निर्माण और सांसारिक जीवन व्यतीत करने के जो नियम वेद में दिए हैं वैसे किसी भी पुस्तक में पाए नहीं जाते | यों तो संसार में, भिन्न भिन्न देशों और भिन्न भिन्न युगों में अनेक महात्मा सुधारक हुए जिन्होंने मनुष्य को गलत रास्ते से बचाया | परन्तु उनके सुधार एकाङ्गी थे | सुधार के साथ-साथ उनसे बिगाड़ भी हुआ है | जैसे कुछ् अत्याचारियों के आक्रमण से बचने के लिए हिन्दुओं ने बाल-विवाह की प्रथा जारी की | परन्तु जब यह प्रथा चल पड़ी तो इसने देश और जाति को कमजोर कर दिया | इसी प्रकार जब मुसलमानों ने मूर्तिपूजा का विरोध किया तो मस्जिदों से मूर्तियां निकाल दी गयीं परन्तु जैसे मूर्तिपूजक मूर्तियों के समक्ष दण्डवत् किया करते थे उसी प्रकार मुसलमानों का सिजदा जारी रहा | जैसे हिन्दु लोग काली माई के समक्ष बकरा चढ़ाते हैं उसी प्रकार मुसलमान लोग भी बकरी, गाय, ऊटंनी की कुर्बानी करते हैं कि जन्नत (स्वर्ग‌) में बैठा हुआ ईश्वर प्रसन्न होगा अन्यथा कुर्बानी का कोई अर्थ नहीं | जब एक हिन्दु काली माई पर बकरा चढ़ाता है तो वह एक ऐसी निर्दयी स्त्री की याद करता है जो पशुओं को मारकर खाती होगी | परन्तु मुसलमानों के अल्लाह के लिए तो वे ऐसा नहीं मानते कि अल्लाह पहले कभी पशुओं को मारकर खाया करता हो | वस्तुतः एकांगी सुधार वास्तविक सुधार नहीं | इस प्रकार आध्यात्मिक रोग उस समय तक दूर न होंगे जब तक वेदों का प्रचार न हो, धर्म का मौलिक सुधार किया जाए | आर्यसमाज का यह मुख्य उद्देश्य है जैसे सूर्योदय होने पर भिन्न भिन्न प्रकार के दीपकों के झगड़े मिट जाते हैं इसी प्रकार जब वेदों का प्रचार हो जाएगा तो आधुनिक धर्म शास्त्रों के पारस्परिक झगड़े भी मिट जाएंगे | रात की अंधेरी में दीपों के होते हुए भी वस्तुओं की आकृति में थोड़ा सा भेद प्रतीत हुआ करता है | सूर्य के प्रकाश में वह भ्रांति दूर हो जाती है | धार्मिक पुस्तकों पर आजकल लोगों का अवलम्बन है जैसे मुसलमान का कुरान, ईसाईयों का बाईबिल | ये सब पुस्तकें इनके लिखने वालों ने अपने समय की कुछ विपत्तियों को दृष्टि में रखकर लिखी थीं | जिनमें उन-उन देशों या उन-उन समयों की और संकेत था | अतः उनका क्षेत्र भी संकुचित था | वह हर समय अथवा हर युग के उपयुक्त न थीं | वेदों में जिस धर्म का प्रतिपादन है वह सभी देशों और सभी कालों में सत्य ठहरता है | इसी को सत्य या सनातन धर्म कहते हैं | हर देश और समय के लोग इसका अनुसरण कर सकते हैं | इसीलिए आर्यसमाज वेदों के पठन, पाठन और श्रवण, श्रावण को हर एक का कर्त्तव्य बताता है |

शेष सात नियम मनुष्यों के साधारण सदाचार तथा व्यवहार से सम्बन्ध रखते हैं | सबसे पहली बात यह है कि आर्यसमाज किसी देश विशेष, नगर विशेष या प्रान्त‌ विशेष के लिए नहीं है | संसार का उपकार करना इसका परम धर्म है | संसार में सब कुछ आ जाता है | जहां तक हमारी, हमारे ज्ञान की या हमारी शक्ति की पहुंच हो | आर्यसमाज न केवल हिन्दुओं के सुधार के लिए है, न केवल मुसलमानों, न केवल ईसाइयों के, आर्यसमाज की सहानुभूति सबके साथ है | वह सबसे प्रेम करता है और जो कोई आर्यसमाज के प्रेम का उत्तर प्रेम से देना चाहता है उसकी सहायता के लिए बिना भेद-भाव के उद्यत है | और सदा उद्यत रहना चाहिए | आर्यसमाज के लिए सब मनुष्य कहलाते हैं | वे सब बिना जाति, रंग, जन्म या लिंग भेद आर्यसमाज में प्रविष्ट हो सकते हैं, यदि उनको समझ में आ जाए कि आर्यसमाज के सिद्धान्त और मन्तव्य अच्छे और मनुष्य के जीवन के लिए आवष्यक हैं |










Tuesday, February 21, 2012

ब्राह्मणवाद, अन्य समूह र जातीय प्रदेश by कुमार रेग्मी


ब्राह्मणवाद, अन्य समूह र जातीय प्रदेश

नेकपा माओवादीले देश र जनताका नाममा भनी २०५२ सालबाट सुरु गरेको हिंसात्मक अभियान भित्रबाट जन्माइएका अग्रगामी छलाङ मारिएका र मार्ने आकर्षक नाराहरूले आफ्नो असली स्वरूप देखाउने प्रक्रिया जारी छ । त्यसैलाई सहयोग पुग्ने गरी माघ १७ गते समग्र नेपाल र नेपालीको हितभन्दा अहित हुने केही सीमित स्वार्थी व्यक्ति र विदेशी हित केन्दि्रत भएर राज्य पुनसर्ंरचना सुझाव आयोगका बहुमत सदस्यबाट जातीय प्रदेशको प्रतिवेदन बाहिर आएको छ । यी प्रयास नेपालीको राष्ट्रिय एकता र भौगोलिक अखण्डताविरुद्ध लक्षित छन् ।

समस्याको सुरुवात

विश्वको सबैभन्दा पुरानो तर उत्कृष्ट, विकसित र नेपालीसँगै विश्वका धेरै भाषाहरूको जननी संस्कृत भाषाविरुद्धको अभियानसँगै हिन्दु पुजारी र मठमन्दिरमाथिको आक्रमण माओवादी हिंसात्मक अभियानको प्रमुख एजेन्डा रह्यो । यसरी तयार पारेको मैदानमा नेपालको सबै भेदभाव र पछौटेपनका कारण संस्कृत पढ्ने ब्राह्मणवादी सोच र शैली रहेको प्रचार गर्दै नेपाल र नेपालीको स्वतन्त्रता, यसको निर्माण र यसका हरेक क्षेत्रको विकास र प्रगतिमा अग्रणी भूमिका खेलेको एउटा ठूलो जातिविरुद्ध घृणाको पृष्ठभूमि माओवादीले नै तयार पार्‍यो । द्वन्द्वकालमा आर्थिक र बाह्य सहयोग जुटाउन माओवादीले चालेका यी कदमले कुन विदेशी धर्म र शक्तिलाई कस्तो राष्ट्रिय मूल्य चुकाएर सशक्त ढंगले नेपालमा खुट्टा गाड्ने अवसर दियो भन्नेबारेको अनभिज्ञता नेपाली राजनीतिमा अब अस्वीकार्य भइसकेको छ ।

विस्तृत शान्तिसम्झौता र अन्तरिम संविधान बन्दासम्म बिस्तारै त्यो झाँगिँदै क्षत्री, ठकुरी र दसनामी समेतलाई नामविहीन अन्य समूहमा पुर्‍याइँदै पाँच वर्ष अघिसम्म कल्पना नगरिएको जातीय राज्यको घातक बहसलाई खुलमखुला आजको नेपाली राजनीतिको एउटा केन्द्रीय प्रश्न बनाउन उनीहरू सफल भए । दुर्भाग्य नै मान्नुपर्छ, यो प्रश्नलाई आँखा, कान र बुद्धि बन्द गरी अग्रगमन र प्रगतिको सूचक मान्नुपर्ने अवस्थाको सिर्जना गराइँदै छ । आफ्नै खुट्टामा बन्चरो हान्दै दलहरूका बाहुन, क्षत्री नेतृत्वबाटै आफूलाई 'अन्य' मा झार्ने महान् कामको इतिहासले पक्कै मूल्यांकन गर्नेछ । यसरी जातीय राज्यमा तोकिएका जातिसमेतको बहुसंख्यक सर्वसाधारण नेपालीको भावनाबाट धेरै टाढा रहेको प्रायोजित झुण्डको हातमा नेपालको भविष्य पुगेको छ । ब्राह्मणले यो कुरा बुझेको छ भनेर प्रत्येक तथाकथित अग्रगामी, जातिवादी र साम्प्रदायिक अगुवाका मुखमा जातीय राज्यको विरोध गर्नासाथ ब्राह्मणवादी सोच भन्ने शब्द झुन्डिन पुगेको छ ।

नेपालमा घृणाको खेती

दोस्रो विश्वयुद्धताका युरोपमा मूलतः हिटलरको नाजी जर्मनले त्यसबेला सबै क्षेत्रमा क्षमताका आधारमा प्रतिस्पर्धा गरी उन्नति प्रगति गरिरहेको यहुदी जातिलाई बाह्य जाति भन्दै आफ्नो अवनति, अधोगति, भेदभाव र कमजोरीको प्रमुख कारण भएको व्यापक प्रचार गर्‍यो । यहुदीहरू अत्यन्तै मेहेनती र पढाइलेखाइमा अगाडि भएका कारण खोज, अन्वेषण, साहित्य, जागिर, व्यापार सबै क्षेत्रमा अगाडि थिए । यहुदीविरुद्धको घृणालाई यति धेरै उचालियो कि उनीहरूको जातीय सफाया गरेपछि मात्र आफ्नो उन्नति र प्रगति सम्भव हुनेछ भन्ने नाजी मान्यता राष्ट्रिय मान्यतामा परिणत हुन गएका कारण अत्यन्त क्रूर र अमानवीय ढंगले साठी लाखभन्दा बढी बालक र वृद्धसहितका यहुदी युरोपमा मारिए ।

त्यो रूपमा समाप्त गर्ने हिम्मत र साहस नभए पनि कतै नेपालका मूलतः ब्राह्मण र त्यससँगै जोडिएका अन्य समूहका क्षत्री दसनामी जातिहरूलाई यहुदीविरुद्ध गरिएको झूटो प्रचारसरह नेपाल र नेपालीको पछौटेपनको मूल कारण बनाउने कुचेष्टा नेपालका उग्र जातिवादी अगुवाहरूले त गरिरहेका छैनन् भन्ने आशंका फैलिने प्रशस्त आधार र प्रमाण उनीहरूको बोली, लेखाइ, क्रियाकलाप र उनीहरूले चलाएको इन्टरनेट, इमेल आदिबाट स्पष्ट भइरहेको छ ।

ब्राह्मणले सधैं आफूलाई नेपाली मात्र भनेर चिनाए र जीवनपर्यन्त चिनाउन चाहे । अरू कुनै विशेषण पटक्कै चाहिएको छैन । म जस्तालाई नेपालीभित्रको म ब्राह्मण हुँ भन्ने सम्झन बाध्य पारिएला भन्ने कल्पना ३/४ वर्ष अघिसम्म पनि थिएन । आफूले कल्पनासमेत नगरेका कारण ब्राह्मणवाद भन्ने छ वा हुन्छ भन्ने विषयतर्फ ध्यान गएन । आज पनि मेरा लागि ब्राह्मणवाद भन्ने छैन । संसारकै मजदुर एक हौं भन्ने विश्व भाइचारा र बन्धुत्वको वर्गीय र ठूलठूला परिवर्तन र अग्रगमनका चर्का कुरा गर्ने माओवादी कम्युनिस्टले ती सबैलाई भाषण र राता किताबमा सीमित पारेर स्वार्थ र शक्तिका लागि जातीय कुरा गरेर उभारेको जमिनमा म नेपाली ब्राह्मण हुँ र केलाई ब्राह्मणवाद भनिँदोरहेछ भनेर सोच्न भने म आज बाध्य भएको छु ।

हामीलाई अरू सबै कुरा छाडेर सानैदेखि पढ्न लगाइयो । दुःखकष्ट गरेर भए पनि जति बढी पढ्यो, ज्ञानार्जन गर्‍यो त्यति नै बढी सक्षम र सफल होइन्छ भन्ने मूल मन्त्रले हाम्रा कान र मष्तिस्क भरिए । विद्या नै धन, सम्पत्ति र यशको साँचो हो । विद्या खोसेर प्राप्त हुन्न, यो आफैंले आर्जन गर्नुपर्छ । हामीलाई यही सिकाइयो, हामीले त्यही गर्‍यौं । आजका अधिकांश सफल ब्राह्मणले त्यही गरेका छन् । के यसो गर्नु अपराध हो ? त्यो हो भने आज कुन जातिको मानिस विद्याआर्जनको प्रतिस्पर्धामा छैन ? कठोर मेहेनत गरेर पढ्ने विद्या आर्जन गर्ने कुनै पनि जातिको मानिस पछि परेको छैन र पछि पर्नै सक्दैन । यो विश्वव्यापी रूपमा सदियौंदेखि सदियौंसम्म लागू भइरहने शाश्वत सिद्धान्त हो । यसरी विद्या नै ब्राह्मणवाद हो भने नेपालमा पढेलेखेका सबै ब्राह्मण हुन् र यसमा सबैले गर्व गर्नुपर्छ किनकि विद्या आर्जन गर्न नचाहने आज कोही छैन । जे गरेर ब्राह्मण अघि बढ्यो आफूले त्यही गर्दै ब्राह्मणलाई गाली गर्न मिल्छ ? यो प्रश्नको जवाफ ब्राह्मणवाद र खस अहंकारवाद भन्ने तथाकथित विद्वान्प्रति लक्षित छ ?

जति मानिसले विद्याआर्जन गरेर शिक्षित बन्दै जान्छ उति उसमा सफा खाने, सफा ठाउँमा बस्ने, घरभित्र र बाहिर स्वतन्त्रता, स्वच्छता, आत्मसम्मान र मर्यादाको अझ बढी खोजी गर्ने चाहना बढ्दै जान्छ । ब्राह्मणलाई फेरि विद्या आर्जनले मात्र पुगेन, त्यो विद्या आर्जन गर्ने यो शरीर हो कि ? मन हो कि ? अझ त्यसभित्रको चेतना हो भन्ने खोजी गर्ने लालसा बढेर आयो । ऊ भौतिक शरीरमा मात्र सीमित रहेन । ऊ यो जीवनमा मात्र सीमित रहेन । जन्मनअघि म को थिएँ ? र मरेपछि म कहाँ जान्छु भन्ने परमज्ञानको खोजी पनि ब्राह्मणले गर्‍यो । आजको विश्वको नवीनतम वैज्ञानिक खोजी पदार्थबाट चेतनातर्फ मोडिइसकेको छ ।

पदार्थ वा भौतिक तत्त्व शाश्वत होइन, चेतना शाश्वत हो र त्यसको सदाबहार भइरहने साक्षात्कार नै मानिसको लक्ष्य हो भन्ने हजारौं वर्ष पहिले पूर्वीय ऋषिमुनीहरूले भेटेर देखेर उपनिषद्मा बताइसकेको विषय नै वास्वतमा शाश्वत रहेछ भन्ने नजिक पश्चिमा वैज्ञानिक पुगिरहेका बेला त्यो ज्ञानको भण्डार भएको संस्कृत भाषा र त्यसैको ज्ञान र खोजी गर्ने ब्राह्मणलाई पछौटेपनको आरोप लगाउनेहरू कति रुग्ण मानसिकताका हुन्, स्वतः अनुमान गर्न सकिन्छ ।

नेपाली परिवेशमा चर्चा

मानव मस्तिष्कले भेट्न सक्ने धेरै उचाइको चर्चा नगरी सतहका हामी आफैंले देखेभोगेको कुरा गर्ने हो भने पनि नेपालका ब्राह्मणले आफूले पाएको ज्ञान र स्वतन्त्रताको अभीष्ट आफैंमा मात्र सीमित नराखी अरूका लागि समेत विस्तारित गरेका छन् । नेपालमा राजनीतिले अन्य सबै विषयलाई थिचेका कारण यसै प्रश्नको वरिपरि रहेर चर्चा गर्दा समेत सम्पूर्ण नेपालीको स्वतन्त्रताका लागि भएका विभिन्न सशस्त्र र शान्तिपूर्ण आन्दोलनमा सहादत प्राप्त गर्ने धेरै संख्यासहित अग्रस्थान ब्राह्मण जाति रहेको छ । नेपालमा छुवाछुत र जातीय भेदभावविरुद्धका सामाजिक अभियानमा ब्राह्मणले नेतृत्वदायी भूमिका निर्वाह गरेका छन् ।

राणाशासनको अभ्युदय भएपछि आजसम्मका नेपालका सबै परिवर्तनको नेतृत्व ब्राह्मणले लिएको भए पनि त्यो जातीय अहंकार उसले देखाएको छैन र सबैलाई समेटेर लाने काम गरेको छ । यसको प्रत्यक्ष प्रमाण राणाशासनविरुद्धका प्रजापरिषद्, नेपाली राष्ट्रिय कांग्रेस, नेपाली प्रजातन्त्र कांग्रेस हुँदै नेपाली कांग्रेसको गठन र भूमिकाबाट समेत प्रस्ट हुन्छ । २००३ साल माघ १३ गते बिपी कोइरालाको नेतृत्वमा गठित नेपाली राष्ट्रिय कांग्रेसको १० सदस्यीय केन्द्रीय कार्य समितिमा देवव्रत परियार, डि.आर. प्रधान, ल्हाक्पा छिरिङ शेर्पा र रुद्रप्रसाद गिरीसहित बाँकी छ जना ब्राह्मण रहेबाट आजका अग्रगमनकारी हुँ भन्नेलाई लाज लाग्ने परिवर्तन र समावेशीको प्रयोग त्यसैबखत भइसकेको प्रस्ट हुन्छ । नेपालको कम्युनिस्ट आन्दोलनको स्थापना र नेतृत्वसमेतमा ब्राह्मण जातिको महत्त्वपूर्ण र निणर्ायक भूमिका रहेको छ ।

पृथ्वीनारायण शाहले नेपाल स्थापना गर्दाको इतिहास पढ्दा ब्राह्मणको जुक्तिबुद्धि र क्षत्री, ठकुरीको बाहुबल र तरबारले यो राष्ट्र खडा भएकामा दुई मत मान्ने ठाउँ छैन । यो भूभागमा को पुरानो, को नयाँ भन्ने आधारमा आदिवासी जनजातिको विभाजित बहस चलाउन चाहने जातिभित्र अल्पमतमा रहेका अगुवा हुँ भन्नेहरूले बुझ्न जरुरी छ, म रेग्मीको नेपालमा २७ पुस्ताको ठाउँठहर सबै खुलेको प्रमाणित इतिहास हामीसँग छ । यसरी ब्राह्मण जातिको यो भूखण्डमा उपस्थिति धेरै पुरानो छ । ब्राह्मण भेटिएपछि उससँग अनुहार, भाषा, संस्कृति र धार्मिक अनुष्ठान एउटै भएका क्षत्री, ठकुरी, दसनामी र पहाडे दलित उससँगै वा अघिदेखि यहाँ रहेको स्पष्ट छ ।

वैदिक युगभन्दा अघिको हजारौं वर्ष पुरानो असभ्य र कबिला जातीय राज्यमा नेपाललाई फर्काउने प्रस्तावलाई अग्रगमन होइन, केही मुट्ठीभर व्यक्तिहरूले एक्काइसौं शताब्दीमा सम्पूर्ण नेपालीलाई विश्व समुदाय अगाडि अपमानित गर्न खोजेको धृष्टता मानिनुपर्छ । यो प्रस्ताव सदियौंदेखि मानव सभ्यता, जातीय सद्भाव, बन्धुत्व र एकता बोकेको यो भूखण्डलाई दीर्घकालीन हिंसा र गृहयुद्धमा फसाई नेपाललाई नयाँ युगोस्लाभिया, रुवान्डा र नाइजेरिया बनाउँदै यसको पहिचान र शान्तिपूर्ण अस्तित्व नामेट पार्ने सुनियोजित षड्यन्त्रको परिणाम हो भन्नैपर्ने अवस्था सिर्जना गराइएको छ ।

अन्यथा १०२ भन्दा बढी जातजाति भएको देशमा केही जातिका नाममा प्रदेशको स्थापनासँगै जातीय अग्राधिकारको प्रस्ताव नेपालीको बीचमा फुट, झगडा र भेदभाव सिर्जना गर्ने मात्र नभई संसारभरिकै मानिस स्वतन्त्र र समान छन् भन्ने विश्वव्यापी रूपमा स्थापित मानवअधिकार र मौलिक हकको सिद्धान्तविपरीतको प्रस्ताव ल्याउने हिम्मत बुद्धिजीवीको दाबी गर्नेबाट सम्भव हुने विषय होइन । हिंसात्मक अभियानका दौरान समर्थन जुटाउन माओवादीले जातीय राज्यको बेहोसी प्रतिबद्धता जनाउनाले सिर्जना गरेको राष्ट्रघातक अवस्थामा विज्ञहरूको स्वतन्त्र आयोगले परिवर्तन ल्याउनुपर्नेमा त्योभन्दा अझ घातक प्रतिवेदन आएकाले उनीहरू बुद्धि, विवेक, तथ्यांक, आफूले पढेको ज्ञान र राष्ट्रिय भावनाले भन्दा व्यक्तिगत स्वार्थ, कुण्ठा, घृणा, ईष्र्या र आफूले आर्थिक र व्यक्तिगत लाभ लिइरहेका संस्थाहरूको चाहनाबाट निर्देशित भएको स्पष्ट हुन्छ ।

Source:-http://www.ekantipur.com/np/2068/10/22/full-story/342321.html#.Tz8OZwxMSZQ.facebook


Monday, February 6, 2012

कबिता: बाहुनहरु

बाहुनहरु
बज्रपात

बाहुनबाद,बाहुनवादीहरु

गधा साले गोरु चोर
भतुवा भाते हरामखोर
गाँडु हुक्के कामचोर
जाली फटाहा भूडिफोर

डल्ले कुइरे बदमास झुठ
पानीगुण्डो मुसुमुन्द्रे ठग
गजडी दलाल हिजडा कुकुर
पानी मरुवा डाँका भडुवा सुगुर

नामर्द बेइज्वती छेरुवा सन्की
वेइमान भालु हिजडा पात्तकी
हैजाको काल बोको बजिया
अनिकाले जंगली घुस्याहा मरिजा

नलिखुट्टे काले सिगाने झिगे
अलछिनी घनटाउके फोहोरी तिघ्रे
खाते भुलक्कड पापी जोईटंग्रे
ढटुवा स्वार्थी नाथे दुइजिबे्र

घोप्टे कप्टी संहारे काइते
लोभी चण्डाल रिसाहा गाइने
गफाडी लठ्ठक खंचुवा लठेब्रो
बज्रस्वाठ आधो निर्धो र अदबेस्रो

महारोगी पाजी अवसवादी गिठ्ठे
जड्याहा भातमारा लाछी रिठ्ठे
उग्रपन्थि चम्चे बाह्रमासे ज्यानमारा
अध्यारो घोप्टे कोढी भाइमारा

गद्धार उल्लु वेबकुफ मुर्ख
चुतिया अधम बाठो र बुज्रुक
पागल साँढे लुते र लुच्चो
बाउन्ने मोरो धुर्त र छुच्चो हुन्

काट्टो खाने, मान्छे खाने गाइको पिसाब खाने चोर लुकी लुकी जाड सुँगुर को मासु खाने चोर जनाई मा जुम्रा बोक्ने जिउदै छोरि को क्रिया गर्ने हरु चोर,पाण्डब हरुले द्रौपती लाई हानेजस्त ५ जना क एक रन्डी राख्ने हरु कृष्ण सबैको रंदो जस्ता लाई मान्ने हरु रंदो पनि भगवान हुन्छ यार










Friday, February 3, 2012

आर्यन सभ्यता by Gopal Gurung

आर्यन सभ्यता
आज भन्दा ४००० वर्ष पूर्व मध्ये एबम दक्षिण - पुर्बी युरोप तथा मद्य यसियाको क्षेत्र आजको अपेक्क्षा मा सम्भवतः अधिक गर्मि चिश्यान् र धेरै जंगल भयको थियो दुनिया को एस भू-भागमा गोरो रंग एबम निलो आखा भएका (नार्द्दिक कबिलाहरु त्यहा भ्रमण गरि रहन्थे | तिनीहरु पर्याप्त समपर्कमा रहन्थे |यिनीहरु क्यास्पियन सागर देखि रायन नदि सम्म फैलिएका थिए अहिले जुन संस्कृत भाषा प्रयोग गर्ने हरु कबिला (सेमेटिक)आर्यनहर...ु १००० इ.पु. भन्दा केहि समय अगाडी भारतको उत्तर तिर पुगेको पाइन्छ | त्यस पछी आज भन्दा 35 सय बर्ष अगाडी भारतमा आर्यहरुको पर्बेस संगै त्यहाका मुलबासी (द्रविट ) हरुको सभ्यतालाई नस्ट गरि वा सर्नाथिको रुपमा भारत पर्बेस संगै आफ्नो सड्यन्त्रलाई फैलाउदै र मुलाबासिंदाको सभ्यता लाई नस्ट गर्दै भारतको पुरै भागमा आर्यहरुको कब्जामा परेपछि त्यहाका द्रविडहरुलाई हर क्षेत्रबाट बन्चित हूर्दै गए । तर यी आर्यनहरुले आफ्नो हस्त क्षेपलाई निरन्तर अगाडी बधाई यसियाको पंजाबि मैदानहरुमा आफ्नो समुदाय लाई फैल्याउदैई लगेर आफ्नो शासन् गर्न थाले यी आर्यहरु नै वर्तमान नेपालमा पनि प्रबेश गरेर हाम्रै पुर्खा समक्ष्य शरन लिए तर आज यहा सबै यि बिदेशी शर्नाथी बाहुन,क्षेत्रीहरु हामीलाई शरणार्थी बनाएर हामी माथी शासक भएर यहाका ८०%मंगोल समुदायलाई शोसित गरिरहेका छन् र यिनी हरु नेपाल पर्बेस गर्दा विभिन्न ठाउँ बाट पर्बेश गरेको उल्लेख छ,बाहुनका पुर्खाहरु कुमाउ र गढवालबाट राजा र राणाहरु चित्तौड, राजस्थानबाट मुसलमानको खेदाइमा परेर आएका भगौटेहरु हुन् र अछुत जनजाति फिरिङ्गे यो शब्द नै हिन्दी हो । अछुत जनजातिहरु राणाका बन्दुके र भरिया भएर पसेका हुन् |यिनीहरु न नेपाली मूलका न भारतीय-नेपाली हुन् |अझै यिनीहरु त बिदेसी नै भनेर प्रस्ट भैसकेको छ आर्यन (सेमेटिक)हरु बिस्वमा आफ्नो साम्राज्य विस्तार गर्ने रंगभेद नीति अपनाउने र शासक बन्ने ति आर्यन समुदाय हुन | यिनी हरु कै सन्तान फेरी तुर्केमिनिस्तानमा अहिले पनि गोरा रंग निलो आँखा भयका आर्यनहरु छन् , यिनी हरु कक्सियस (क्यास्पियन सागर) देखि विभिन्न दिसा मोडिय ति मध्ये कै एक झुण्ड आर्यन नै हुन् र यी आर्यन लाई नै पहिले सेमेटिक भनिथ्यो,अर्थात आर्यन र यि आर्यहरुको सभ्यता चाहि घुमक्कड समुदाय हो । न घर न तँ थर यी जहा सोझा मानिसको बसोबास छ त्यहिका मुलबासिन्दालाई हडप्पेर आफु शाषक बन्ने यी बिदेशी सड्यन्न्त्रकारीहरुको मुल मंन्त्र हो।

ढुंगालाई दुध र मान्छेलाई मुत खुवाउने संस्कार भएका विदेशी हिन्दु आर्यान बाहुन क्षेत्रीहरुबाट नया नेपाल बन्न सक्दैन l

ढुंगालाई दुध र मान्छेलाई मुत खुवाउने संस्कार भएका विदेशी हिन्दु आर्यान बाहुन क्षेत्रीहरुबाट नया नेपाल बन्न सक्दैन –गोपाल गुरुङ् काठमाडु : नेाभेम्बर २८ को दिन रसुवा जिल्लाको स्याफु्रबेसी बजारमा भएको मंगोल नेशनल अर्गनाइजेशनको अधिकार सभामा हजारौ भेलालाई सम्बोधन गदै मंगोल नेशनल अर्गनाइजेशनका प्रेसिडेन्ट गोपाल गुरुङले नेपाललाई भिखमागी खानेहरुले चलाएको हुनाले र ढुंगालाई दुध र मान्छेलाई मुत खुवाउने विदेशी हिन्दु आर्य बाहुन क्षेत्रीहरुले चलाएको हुनाले न हिजो बन्यो न त भोली बन्छ भन्दै यो मुलुक बनाउनको निम्ति यसै धर्तीका अहिन्दु मुलबासी मंगोलको हातमाथी मुलुकको राजनैतिक शक्ति आउनुपर्ने नितान्त आवश्यक भएको बताउनु भएको छ। हिन्दुआर्य बाहुन क्षेत्रीहरु भनेको यस मुलुकको निम्ति विदेशीहरु हुन् र विदेशीहरुले अर्काको मुलुकलाई शोषण गरेर मोज गर्न मात्र जानेको हुन्छ बनाउन होइन। बाहुन क्षेत्रीहरु भारतका कुमाउ, गड्वाल, राजस्थानको चितौडाबाट मंगोलको खेदाईमा परेर हाम्रो मुलुकमा धोती र जनै मात्र लगाएर भित्रेका विदेशी शरणार्थीहरु हुन्। यिनीहरुका पुर्खालाई हाम्रा पुर्खाले शरणको मरण गर्नु अनुचित सम्झेर शरण दिएका थिए तर यी बैगुनीहरुले गुणले गुण खान्छ म तलाई खान्छु भन्ने उखानलाई सत्या सावित गरिदिएका छन्। यि विदेशी शरणार्थी हिन्दु आर्यन बाहुन क्षेत्रीहरुले हाम्रा पुर्खालाई बास मागे हाम्रा उद्धार हृदयी र कोमल हृदयी भएका अहिन्दु मुलबासीका पुर्खाले बास दिए। बासले मात्र भएन हजुर गाँस पनि निगाहा होस् भने बास पछि गाँस पनि दिए। बाँस र गाँस दुबै पाए पछि हामी अहिन्दु मुलबासी मंगोलहरुलाई नै उठिबास लगाएर ४५० वर्ष पछि हामीलाई नै आफनै मुलुकमा शरणार्थी झै बनाएका छन्।

बाहुनहरु हिजो हाम्रो घर घरमा पाती पढेर, नागको नक्सा टालेर र कुसको मुठा झुडाएर मागि खान्थे भने आज आएर यिनीहरुले हाम्रो मुलुकलाई बन्दगी राखेर, भष्ट्राचार र बैमानी द्धारा प्रचुर मात्रामा कमाई रहेका छन्। यिनीहरुलाई यो देशको न त माया नै छ न त यो देश बनाउने चासो नै छ। यिनीहरु विदेशी भएकै कारणले र यो देश तिनीहरुको नभएको कारणले अहिन्दु मुलबासी मंगोलहरु बस्ने गाँउ ठाँउलाई अविकसित नै राखे किन कि अहिन्दु मुलबासी मंगोलहरु रहन–सहन गर्ने ठाँउमा बाटो–घाटो बनाएको खडमा हामीमा चेतना आउने स्कुल बाटो–घाटो बन्ने र तिनीहरुको हातबाट राजनैतिक सत्ता खोसिने डरले तिनीहरुको मनमा सधै नै ढ्याङ्ग्रो ठोकि नै रहेकेा छ। त्यसैकारण यो विदेशी हिन्दु आर्य बाहुन क्षेत्रीहरु मर्नको निम्ति काशी बनारस धाउछन् र मर्नको निम्ति काशी बनारस पुग्छन्। नेपालमा अराष्ट्रीय सबै थोक राष्ट्रिय र राष्ट्रियलाई अराष्ट्रिय बनाएका छन्। नेपालको झडा अराष्ट्रीयताको प्रतिक हो। क्यालेडर पनि अराष्ट्रिय हो। चाडबाड लगायत पोसाक पनि अराष्ट्रिय नै हो। राममणी दिक्षितले भलो कुराको, नमुना भन्दै लेखेका थिए। यो देश जंगली भुस तिघ्रे खर्पने, पाखेहरुको हो यसलाई यसै गरि राखी देउ भगवान, यिनीहरु सुध्रे हाम्रो सिरिखुरी कहाँ जाला, मंन्त्रीमडल चुन्दा क्षेत्री बाहुन हुली चुन्नु मतवाली कवै नहुल्नु भनेर उपदेश दिएका थिए र नेपालको मन्त्रीमडल त्यसै अनुरुप बन्छ।

राममणी दिक्षितको उक्त कविताले नै प्रमाण दिन्छ– यो देश हिन्दु आर्यान शरणार्थी बाहुन क्षेत्रीहरुको होइन भनेर। यसै कारण यि विदेशी हिजोका शरणार्थीहरुले यो मुलुक बनाउने कल्पना पनि गर्न सक्दैनन् भनेर। हामी मुलबासी अहिन्दु मंगोलहरुको रगत र पसिनाले सिन्चिएर मलिलो भएको यो हाम्रो मुलुकलाई अब हामीले साँचो रुपमा आफनो बनाउनका निम्ति ज्यँुदो मंगोल जस्तै भएर बाँच्न र मर्न सिक्नु पर्छ। मंगोल नेशनल अर्गनाइजेशनका प्रेसिडेन्ड गोपाल गुरुङले मन्त्रमुग्द भएर भाषण सुनि रहेका विशाल नागरिक समुदायलाई सम्बोधन गदै भन्नु भयो– यो देशको राजनितिक लडाई भनेकै कुनै शैद्धान्तिक लडाई नभएर हिजोका शरणार्थी हिन्दु आर्यन बाहुन क्षेत्री र अहिन्दु मुलबासी मंगोल माझको हो। बाहुन क्षेत्रीले नेतृत्व गरेको कुनै पनि पाटीले यो मुलुकका अहिन्दु मुलबासी मंगोलको भलो चिताउछ भन्नु कल्पवृक्षको कल्पना गर्नु र पारस पत्थरको कल्पना गर्नु एकै हो।

अहिन्दु मुलबासी मंगोलहरु यस मुलुकका हुकुमबासी थिए। आज सुकुम्बासी बनाइएको छ। हामी सर्वभरा थियौ। आज सर्वहारा बनाइएको छ र फेरी पनि सर्वहाराको नारामा हाम्रो भोट लिएर ति हिन्दु आर्यान शरणार्थीहरु सर्वभरा बन्छन् हामीलाई सर्वहारा बनाउदै लैजान्छन् तरै पनि हामीमा चेतना छैन। तपाईहरुलाई आफनो छोराछोरी नातिनातिनी र सन्तान दर सन्तानको माया छ भने र चिन्ता छ भने आफनो भावि पिढीको उज्जवल र सुरक्षित भविष्यको निम्ति अब मंगोल नेशनल अर्गनाइजेशनमा आबद्ध भएर अघि बढ्नुस्। तपाईहरुलाई थाहा छ? पहिलो विश्व युद्ध देखि १९६५ सम्मको युद्धमा गुरुङ, मगर, राई, लिम्बु र तामाङ यि पाँच वटा समुदायबाट पच्चिस लाख युवाहरु मारिए। तिनीहरुको रगत जम्मा गरेर बगाएको भए हिमालदेखि बगेर मधेस सिन्चिनु पुग्थ्यो। हिजो तपाईको हातमा भएको मलिलो खेतबारी आज शरणार्थी हिन्दु आर्यान बाहुन क्षेत्रीको हातमा पुगेको छ। त्यो तिनीहरुले किनेर होइन लुटेर, धुतेर, षडयन्त्र र महाषडयन्त्रद्धारा लिएका हुन् किनकि तिनीहरुका हातमा राजनैतिक शक्ति केन्द्रित भयो। अब हामी राजनैतिक चेतनशिल भएर राजनैतिक शक्ति आफनो हातमा लिनु छ। आफनो भावी पिडीको उज्जवल र राजनैतिक भविष्यको निम्ति। गुरुङले आफनो भाषणमा जोड दिदै दृढताका साथमा भन्नु भयो। यो २१ औ शताब्दी हाम्रो मुक्तिको शताब्दी हुनेछ। हामी अहिन्दु मुलबासी मंगोलको हुनेछ। मैले २००८ र २००९ मा ठुल्ठुला तिन वटा लडाई जितेको छु। यो हो राजसंस्था उखेलेर फेक्ने काम–मंगोल नेशनल अर्गनाइजेशनले १८ वर्ष पछि दर्ता पाएरै छाड्यो र डिएफआइडि ले मुलबासीको नाममा ठगी खादै आएको आदीबासी जनजातीलाई दिदै आएको १९ करोडको रकम रोक्ने काम। सही अर्थमा आदिबासी भनेको बाहिरबाट आएका जमत हुन् र जनजाती भनेको हिन्दु समाजमा देश नै नहुने जमात हेा। अब हामी दुबै प्रकारले लडाई जित्छौ। हामी व्यालटबाट पनि लडाई जित्छौ र बुलेटबाट पनि। सो हजारौको संख्यामा उपस्थित अधिकार सभालाई सम्बोधन गदै खोटाङ जिल्ला सभाका अध्यक्ष विरलाल राई, मंगोल भिजनका प्रकाशक एवम् सम्पादक कृण बहादुर तामाङ, शेर्पा थुप्तेङ लामाले पनि आफनो मन्तव्य व्यक्त गर्नु भएको थियो। नेपालमा बाहुन ४ प्रतिशत र क्षेत्री १६ प्रतिशत गरेर दुबै मिलाउदा २० प्रतिशत भएकोले अब ८० प्रतिशत अहिन्दु मुलबासी मंगोल माथी कुनै पनि अन्याय अत्याचार शोषण र दमन भएमा यो देशका ८० प्रतिशत अहिन्दु मुलबासी मंगोलहरु यस भुमिमा डाइनमाइनट बनेर विस्फोट हुनेछ। अधिकार सभाका बक्ताहरुले भन्नुभयो।

नेपाली भुमिमा रोग, भोक र गरीबिको बिरुद्धा हुँदैँछ बिद्रोह

by Jiban Mongol Rai on Saturday, September 10, 2011 at 1:33am

नेपाली भुमिमा रोग, भोक र गरीबिको बिरुद्धा हुँदैँछ बिद्रोह

मंगोल भिजन साप्ताहिकले मंगोल नेशनल अर्गनाइजेसन केन्द्रीय सभाका प्रेसिडेन्ट गोपाल गुरुङद्वारा लिखित नेपाल र सिक्किमको राजनीतिमा नौलो अछुत जनजाति फिरिङ्गे समुदाय सृजना (Newly Created Untouchable Janjatee (Nomad, gypsy) Socity in Nepalese and Sikkimese Politics) नामक पुस्ताकको छैटौँ संस्करण यही मार्च महिनाको अन्तिम हप्ता ७५ हजार प्रती प्रकाशन भएको छ । यस पुस्ताकको पिडिएफ फाईल यसै साथ संलग्न छ । नेपाल र सिक्किमको राजनीतिमा नौलो अछुत जनजाति फिरिङ्गे समुदाय सृजना नामक पुस्ताकको कभरमा लेखिएको छ मैले पसिना मागे पसिना देऊ, रगत मागे रगत देऊ, म तिम्रा छोरा-छोरीको उज्वल र सुरक्षित भविष्यका निम्ति हाम्रो लुटिएको अस्तित्व फिर्ता गर्नका निम्ति प्राण दिन तयार छु । जुन मुलुक साम्राज्यवादीको अधिनमा हुन्छ त्यस मुलुकको मूलबासीको भाग्यमा दुःख पाउनु खेताला बनिनु र दासत्व स्वीकार्नु मात्र लेखिएको हुन्छ । नेपालमा पनि शरणार्थी भएर भित्रिएका साम्प्रदायिक वर्ण-भेदी साम्राज्यवादी हिन्दु-आर्यन बाहुन-क्षेत्रीको हातमा परेदेखि नै यहाँका अहिन्दु मूलबासी मंगोलहरुका फाँटिला खेतहरु, मलिला बारीहरु र रमाइला घरहरु लुटिएका छन् । यिनीहरु नाम्ले, कोदाले, ढाक्रे, अशिक्षित बनाइएका छन् । साम्राज्यवादी बाहुन-क्षेत्री भारतीय-नेपालीहरुको दयामा बाँच्नुपर्ने बनाइएका छन् ।

बाहुनका पुर्खाहरु कुमाउ र गढवालबाट राजा र राणाहरु चित्तौड, राजस्थानबाट मुसलमानको खेदाइमा परेर आएका भगौटेहरु हुन् र अछुत जनजाति फिरिङ्गे यो शब्द नै हिन्दी हो । अछुत जनजातिहरु राणाका बन्दुके र भरिया भएर पसेका हुन् । यिनीहरु पनि नेपाली मूलका नभएर भारतीय-नेपाली हुन् । यो ऐतिहासिक तथ्य यहाँका मूलबासीहरुलाई बुझाऊ सिंहको अनुहारमा बिरालो नबन । जनजातिहरु तिनीहरुको मालिकको प्रभु-भक्त बनेर तिनीहरुलाई छुट्याइदिएको हड्डीको लोभमा अरुलाई पनि भ्रममा पारी आफ्नो जमात बढाउने काममा र तिनीहरुका साम्राज्यवादी मालिकलाई खुशी पारी दयाको भिक्षा लिने काममा जुटिरहेका छन् छटपटाइरहेका छन् । होसियार ! दलदले भासमा जाकिनका निम्ति नजाऊ होडबाजी नगर । मंगोलहरुलाई एमएनओको दर्ता होइन आफूलाई चिन्न सक्ने चेतनाको खाँचो छ ।

म दासत्वलाई भन्दा मृत्युलाई रुचाउँछु । यसकारण म लोकतन्त्र अर्थात् गणतन्त्र, धर्म-निरपेक्ष र प्रान्तीय-सरकार भएको मुलुक चाहन्छु । प्रान्तीय-सरकार कुनै समुदायको नाममा होइन; नदी-नाला, पहाड-पर्वतको नाममा हुनुपर्छ र हिन्दु राष्ट्र नेपालका समस्त अहिन्दु बुद्धिस्ट, कृश्चियान, सिख, मुसलमान र जैनको साझा चिहान हो । उठ जुट जुझ र आफ्नो भावी पिँढीलाई यस नर्क-कुन्डबाट बचाऊ । अहिन्दु अहिन्दु- एक हौं । यसै गरी पुस्ताकको कभरको अन्तिम पृस्ठामा मंगोल मुक्ति सेनाको अपिल प्रकाशन गरिएको छ । अपिलमा भनिएको छ आदरणीय दाजु-भाइ तथा दिदी-बहिनीहरु, नेपालका अहिन्दु मूलबासी मंगोल समुदायलाई ४५० वर्षदेखि शोषण, दमन, अन्याय र अत्याचार गर्दै आइरहेको धमिरा लागेर मक्किइसकेको विदेशी हिन्दु आर्यन बाहुन-क्षेत्री शाषक आज अत्यन्तै कठिन, जटिल र संकटग्रस्त अवस्थामा पुगेको छ । यी विदेशी आक्रमणकारी हिन्दु आर्यन बाहुन-क्षेत्री शाषकहरु यस अवस्थामा पुग्नुमा मंगोल नेशनल अर्गनाइजेशन र नेपालका ८० प्रतिशत अहिन्दु मूलबासी मंगोल समुदायका युवा-युवतीहरुको ठूलो देन रहेको छ ।

४५० बर्षा देखी शोषण, दमन, अन्याय र अत्याचार गर्ने यी साम्राज्यवादी, विस्तारवादी र हिन्दु अतिवादी शाषकहरुबाट मुक्ति हुनका निम्ति नेपालका अहिन्दु मूलबासी मंगोल समुदायका हजारौँ युवा-युवतीहरुले बलिदानपूर्ण संघर्ष गर्दै आइरहेका छन् । यही संघर्षका कारण देखावटी रुपमा भए पनि यहाँका शाषकहरु परिवर्तनको नाटक गरिरहेका छन् । विगतमा पनि हाम्रा अग्रजहरुले संघर्ष गरेका थिए तर यी शाषकहरुले हाम्रा अग्रजहरुलाई परिवर्तनको नाटक गरी विश्वासघात

गरे । अहिले पनि एनेकपा माओवादी, नेपाली कांग्रेस र एमालेको नेतृत्वमा रहेका बाहुन-क्षेत्री नेताहरुले हाम्रो समुदायका युवा पुस्ताप्रति त्यस्तै नाटक र गद्दारी गरिरहेका छन् । किनिक तिनीहरुको पुर्खाको चरित्र र यिनीहरुको चरित्रमा कुनै भिन्नता र फरक छैन । यिनीहरुले निश्चित समयमा संविधान नबनाउनुको मूल कारण यही हो । यिनीहरुका पुर्खा हिँजो नेपालमा शरणार्थी भई हाम्रो पुर्खाको घर-घरमा नागको नक्शा टाँस्दै पाती पढेर मागी खाने गर्थे । आज हाम्रो मुलुक नेपाललाई तिनीहरुका सन्तानले बन्दकी राखेर विदेशीहरुसँग भिक्षा थापिरहेका छन् । संविधानसभाको नाममा १२० अर्ब रुपैँया खर्च हुनु तर संविधान नबन्नु यसैको परिणाम हो ।

हामीमाथि यी विदेशी हिन्दु आर्यन बाहुन- क्षेत्री शाषकहरुले कहिले शाह बंशीय राजतन्त्र, कहिले पाचायती व्यवस्था त कहिले कांग्रेश, एमाले र माओबादीको नाममा आफ्नो सामन्ती-सत्ता र संस्कार जबरजस्त रुपमा लादेर हामीमाथि शोषण, दमन,अन्याय र अत्याचार गरिरहेका छन् । अहिले हामी प्रत्येक नेपालीको थाप्लोमा विदेशीहरुको २० हजार रुपैँया ऋण छ । नेपाल जलश्रोतको धनी मुलुक भए पनि पिउने पानीको समस्या र लोडसेडिङको भार मुलुकले खेप्न बाध्य छ । महंगीले नागरिकको ढाड भाँचिएको छ, विकास निर्माणका कामहरु ठप्प छन् । हत्यारा, अपहरणकारी, देश लुटेरा र भ्रष्टचारीहरुलाई एनेकपा

माओवादी, नेपाली कांग्रेस र एमालेको नेतृत्व पंक्तिले संरक्षण गरिरहेका छन् । किनकि यी सबै राजनैतिक दलको नेतृत्व तहमा विदेशी हिन्दु आर्यन आक्रमणकारी बाहुन-क्षेत्रीहरु छन् । हामी यिनै हत्यारा, अपहरणकारी, देश लुटेरा, भ्रष्टचारी र महंगीको विरुद्धमा नेपालका अहिन्दु मूलबासी मंगोल समुदायको जनमत सृर्जना गरी यसका विरुद्ध भिषण आँधि-बेहेरीका साथ संघर्ष गर्ने तयारीमा जुटिरहेका छौँ । हामिलाई तपाइहरुको आमुल्या साथ सहयोग र सल्लाह प्रप्ता हुनेछ भन्ने आपेक्षा गरेका छौँ । संगठन विस्तार तथा सदस्यता वितरण अभियानमा सहभागी भइदिनु

हुन हार्दिक अनुरोध गर्दछौं ।

जय मंगोल !


Source- आर्यन सभ्यता - प्रस्तुत लेख मंगोलबादी नेता गोपाल गुरुंगको विचार हो

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